शक्ति की उपासना से सरल होते हैं सभी काम
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शक्ति की उपासना से शक्तिशाली बनते है। श्री नारायण के अर्धअंग में लक्ष्मी जी का वास है। शंकर जी के अर्ध अंग में पार्वती जी का वास है। महामाया (श्री राधा जी) श्री कृष्णा के अर्ध अंग में वास करती है। सरस्वती ब्रह्मा जी का अर्ध अंग है। इसलिए ब्रह्मा जी ज्ञानी कहलाये है। ब्रह्मा जी ने अपना ज्ञान व्यास जी को दिया है। व्यास जी ने वही ज्ञान संसार को दिया।
भगवान शंकर ने कहा ,शक्ति मेरे साथ हे तो में शिव हूं और शक्ति मुझसे अलग होती है। तो में शव हो जाता हूं। ज्योतिर्लिंगों में शंकर पर्विती एक साथ है। इसलिए इनके दर्शन का विशेष प्रभाव होता है। भगवान राम ने माँ शक्ति की उपासना सप्टेक शिला चित्रकूट में विभिन्न फूलो से दिव्य श्रृंगार कर माँ को प्रस्सन कर शक्ति प्राप्त की। तभी रावण सहित अन्य दुष्टो का राम जी संघार कर पाए। श्री कृष्णा भगवान् ने श्री राधा जी की उपासना की। तभी बाल अवस्था में आस्चर्यजनक लीलाये की। शंकर भगवान् ज्ञानी वैरागी शक्ति शाली माँ पार्वती के साथ रहने से बने। माँ सीता ने श्री हनुमान जी से कहा की मेरी रक्षा भगवान के नाम रूप और अश्त्र का ध्यान करने से हो रही है। नाम पहरेदार हे,रूप तिजोरी है, और अश्त्र ताला है। इनसे मेरे अंदर और बाहरी दोनों शत्रुओ से रक्षा हो रही है। नवरात्रो में माँ के नाम, रूप ,अश्त्र का ध्यान करने से अंदर और बहार के शत्रु (दुष्ट ) से रक्षा होगी।
