यह भी जानियें:— आज 133 वीं जयंती है:— समाज सुधारक मुंशी हरि प्रसाद टम्टा की
1 min read
आज कुमाऊं शिल्पकार सभा के संस्थापक सात वर्ष तक अल्मोड़ा नगर पालिका के चेयरमैन रहे तथा 1934 में समता अखबार के संस्थापक 1935 में स्पेशल मजिस्ट्रेट रहे व 1936 में गोंडा जनपद से र्निविरोध विधायक चुने गए हरि प्रसाद टम्टा की 133वीं जयंती है। उनका जन्म 26 अगस्त 1887 को रक्षाबंधन के दिन हुआ तथा उन्होंने मिडिल तक शिक्षा ग्रहण की व उर्दू व फारसी में मुंशी। उन्हें हिन्दी, अग्रेंजी, फारसी, उर्दू व कुमाऊंनी भाषा का भी अच्छा ज्ञान था। उन्हें 1921 में संयुक्त प्रांत आगरा अवध के गर्वनर द्वारा समाज सेवा के कार्यो के लिए विशेष प्रमाण पत्र दिया गया। 1925 में उन्होंने पूरे पर्वतीय क्षेत्र के भूमिहीनों दस्तकारों व शिल्पकारों का एक ऐतिहासिक सम्मेलन अल्मोड़ा के समीप डयोलीडाना में किया तथा उसमें 21 महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए। 1940 में वे प्रान्तीय व्यवस्थापिका सभा के लिए चुनें गए। 1934 में शिल्पकारों व अन्य दलित व निर्बल वर्गों की जागृति के लिए समता साप्ताहिक अखबार के स्थापना की वे 1945 से 1952 तक अल्मोड़ा नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गए इससे पूर्व तीन बार लगातार पालिका सदस्य व चेयरमैन रहे। वे जिला परिषद के सदस्य व वाइस चेयरमैन भी रहे। उन्होंने शिल्पकार सभा के तत्वावधान में पर्वतीय क्षेत्र के दलित शोषित शिल्पकारों समस्त् भूमिहीनों को संगठित कर उन्हें सशक्त नेतृत्व प्रदान किया तथा 5 वर्षो के कठिन परिश्रम के पश्चात् शासन ने भूमिहीनों को भूमि देना स्वीकृत किया और कुल 30 हजार एकड़ भूमि शिल्पकार भूमिहीनों में वितरीत की गयी। उस समय पर्वतीय क्षेत्रों में परम्परागत दस्तकारों भूमिहीनों व अन्य मेहनतकश दलित शोषितों को अपमान जनक नाम से सम्बोधित किया जाता था जिसका उन्होंने विरोध किया और वे सभी समुदाय के लोगों को राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्त्रर का नाम शिल्पकार देकर उन्हें एक शब्द में पिरोया। कुमाऊं शिल्पकार सभा के माध्यम से कुमाऊं एवं गढ़वाल में 150 प्राइमरी स्कूलों की स्थापना की तथा गरीब महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने के उद्देश्य से महिला शिल्प विद्यालयों की स्थापना कराई अल्मोड़ा में भोकेशनल ट्रेनिंग सेन्टर वर्तमान आईटीआई का शुभारम्भ का श्रेय उनको ही जाता है। लोकसेवा व परोपकारी मुंशी हरिप्रसाद टम्टा ने 1907 में अकाल के समय कुमाऊं के अनेक स्थानों में खाद्य सामग्री की सस्ती दुकानें खोलकर अकाल पीड़ितों की सहायता की। वे सदा स्वतंत्रता के पक्षधर रहे और वे प्रत्येक भारतीय की स्वतंत्रता चाहते थे।
मुंशी जी ने पर्वतीय प्रदेश की सामाजिक स्थिति दलित शोषितों पर होने वाले अत्याचार उत्पीडन तथा उनकी समस्याओं के सम्बंध में अपनी लेखनी द्वारा अनेक राष्ट्रीय समाचार पत्रों में आवाज बुलंद की। 23 फरवरी 1960 को प्रयाग में उनका निधन हो गया। आज स्वर्गीय टम्टा की जयंती पर उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित की जा रही है और उनके द्वारा समाज में किए गए सुधारों का अनुसरण करने की प्रतिज्ञा उनकी मूर्ति के समक्ष की जा रही है।
प्रस्तुति:— कैलाश पाण्डे
