यह भी जानिये:- कुमाऊं क्षेत्र में डाक व्यवस्था का इतिहास
1 min read क्षेत्र में नियमित डाक व्यवस्था सन् 1893 से प्रारम्भ हुई। इससे पूर्व कुमाऊं में आम जनता के लिये कोई डाक व्यवस्था नहीं थी अलबत्ता यहां की सरकारी डाक व्यवस्था ग्राम प्रधानों के निर्देशानुसार ग्रामीणों के द्वारा बारी-बारी से बेगार में ले जायी जाती थी इस प्रथा को हुलक कहा जाता था (हुलक लकड़ी के कोठो को कहा जाता है) जिसमें सरकारी चिठिृयां चिपकाई जाती थी।
बाद में सर जान स्ट्रेची जो गढ़वाल के वरिष्ठ कमिश्नर बनकर आये उन्होंने अस्थाई तौर पर कुछ हरकारे नियुक्त किये जिसे आम जनता की डाक ले जाने का काम सौंपा गया ये डाक हरकारे कहलाये जाते थे जो थैले में से छाटकर डाक ले जाते थे कुमाऊं में कुछ समय तक यही प्रथा चली रही।
कुमाऊं में डाक व्यवस्था को सुचारु रुप से चालू करने का श्रेय अल्मोड़ा जिले के नागरिक मनोरथ भट्ट को है जो 1875 में रुहेलखण्ड मण्डल में डाक विभाग में एक कर्मचारी नियुक्त हुये थे
जब मनोरथ भट्ट की डाक विभाग में नियुक्ति हुई थी उन्होंने कुमाऊं में नियमित रुप से डाक व्यवस्था स्थापित करने का बीडा उठाया और इसके लिये कठिन परिश्रम करके उन्होंने डाक वितरण के लिये योजना बनाकर अंग्रेज अफसरों को भेजा और जिसे अंग्रेज अफसरों ने स्वीकार कर लिया तथा पहला डाकखाना राजभवन गढ़वाल में स्थापित हुआ। जब 1901 में मनोरथ भट्ट कुमाऊं के डाक विभाग में नियुक्त हुये तो अल्मोड़ा में वर्तमान डाक खाने के भवन की नीव पड़ी।
