जानिये बीरबल भी पुरोहित बनकर आये थे— अल्मोड़ा
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कुमाऊं का राजकाज अल्मोड़ा से चलाया जाता था सन् 1815 से पहले लगभग 230 साल तक चंद शसकों ने कुमाऊं में राज काज किया तल्ला महल, लाल मंडी, मल्ला महल किला इसके गवाह है।
शक्ति 14 अक्टूबर 2014 में अमर उजाला के चीफ सब एडिटर दीप जोशी के अनुसार चन्द शासक भीमचन्द ने सन् 1500 के आस—पास कुमाऊं की राजधानी चंपावत से अल्मोड़ा लाने की ठानी—भीमचन्द सबसे पहले खगमरा कोट आए। वर्तमान में इस स्थान पर खगमरा में मन्दिर है।
इस बीच राजा गजुवा अपने साथियों के साथ यहां पहुंचा और उसने नीद में राजा भीमचन्द को मार डाला उसके बाद बालों कल्याण चन्द ने खगमरा किले के स्थान पर लालमण्डी वर्तमान छावनी को यह किला बनाया यह किला मण्डी कोट कहलाया इसी के साथ अल्मोड़ा में बरसात शुरु हुई।
अंग्रेजों ने अपने शासन काल में लालमण्डी का नाम फोर्ट भायरा रखा। राजा रुपचन्द के कार्यकाल में 1567 से 1597 में नए राज निवास का निर्माण करवाया गया जो मल्ला महल कहलाया। वर्तमान में भव्या मल्ला महल की प्राचीन रक्षा दीवारें और रामशिला मन्दिर ही भूल अवशेष है शेष भवन नष्ट हो गए है।
यहां अंग्रेजों ने नए भवन बनाये जिनमें अब अल्मोड़ा कचहरी है। एटकिन्सन के अनुसार राजा विजय चन्द ने अल्मोड़े का मुख्य द्वार बनाया। चन्द शासकों द्वारा ड्योडीपोखर में बनाया गया तल्ला महल अब जीर्णशीर्ण हालत में है। इस महल में स्थित मंदिर में
आज भी चन्द वंशज आकर नन्दा देवी के अवसर पर यहा पूजा पाठ करते है।
अल्मोड़ा के चंदवंशज शासक दिल्ली के मुगल सम्राटों के समकालीन थे मुगलों से उनका निकट का संपर्क का कुमाऊंनी राजा रुद्रचंद तो अकबर की सहायता के लिये लाहौर तक गये। इलिएट नामक इतिहासकार के अनुसार इसी राजा ने बीरबल को अल्मोड़ा बुलाकर चंद राजाओं का राज पुरोहित बनाया था। हिन्दी के तत्कालीन कवि भूषण और मतिराम को भी अन्तिम दिनों में अल्मोड़ा बुलाया था। चंद शासको के अन्तिम दिनों में अल्मोड़ा के कई क्रान्तियां हुई 1744 में रोहिला सरदार हाफिज रहमत खां ने अल्मोड़ा को लूट लिया इसके बाद राजाओं की सत्ता जम न सकी। 1790 में अल्मोड़ा में गोरखो की फौज पहुंच गई और सत्ता पर कब्जा कर लिया अंत में अंग्रेज यहां आये।
