जानिये क्यों हुई बद्रेश्वर की रामलीला बंद—पढ़ें पूरा विवरण
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अगामी 29 सितम्बर 2019 से इस वर्ष शारदीय नवरात्र प्रारम्भ हो रहे है। शारदीय नवरात्रों में कुमाऊं का वातावरण धर्ममय हो जाता है। रामकथा का श्रवण और शक्ति की उपासना से प्रत्येक घर गुंजित हो जाता है। कुमाऊं के हर कोने में रामलीला का आयोजन किया जाता है। पितृपक्ष में कलाकारों को बुजुर्ग संगीतज्ञों द्वारा तालीम दी जाती है। रामलीला का मंचन करने वाले पात्र नौ दिन तक तामसी भोजन को वर्जित करके भनोभावों से रामकथा का मंचन करते हैं।
कुमाऊंनी रामलीला का श्री गणेश अल्मोड़ा के ऐतिहासिक बद्रेश्वर मंदिर में हुआ था तथा सर्वप्रथम यह उत्सव 1888 में यह प्रारम्भ हुआ था तब से बराबर यहा रामलीला का मंचन होने लगा तथा इस रामलीला नाटक को स्व0 देवीदत्त जोशी तहसीलदार का स्मरण हो आता है। जिन्होंने इसका प्रारम्भ स्व0 रा0ब0 बद्रीदत्त जोशी सदर अमीन के सहयोग से इसे प्रारम्भ किया। किंतु तब से यह रामलीला का यह मचन बद्रेश्वर में होता रहा कालान्तर में किंतु वर्ष 1946 में बद्रेश्वर जहां पर यह रामलीला का मंचन होता था इस जमीन के मुन्तजिम रा0ब0 बद्रीदत्त जोशी के पौत्र ने इस स्थान पर रामलीला होने से रोका।
इसका पूरा विवरण शक्ति 21 अक्टूबर 1947 के अंक में इस प्रकार प्रकाशित हुआ। पढे और जाने…..
अल्मोड़ा में नौकरशाही की अंधेरगर्दी
जनता के रामलीला करने के अधिकार पर वार
”हैलेटशाही और मिश्रागर्दी के संस्मरण”
सार्वजनिक हित के विरुद्ध व्यक्तिविशेष के प्रति पक्षपात
यह विचार था कि राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद इस वर्ष धार्मिक तथा सांस्कृतिक उत्सव श्री रामलीला को द्धिगुणित उत्साह से मनाया जाय तथा इस उत्सव की हीरक जयंती भी समारोह पूर्वक मनायी जाय क्योंकि बद्रेश्वर में यह उत्सव सर्वप्रथम 1888 में मनाया गया था तब से बराबर इस स्थान पर लीला का उत्व मनाया जाने लगा। इस उत्सव का आयोजन करने वालों में इस अवसर पर नगर के तत्कालीन प्रतिष्ठित पुरुष स्व0 पं0 देवी दत्त जोशी तहसीलदार व स्वर्गीय रा0ब0 पं0 बद्रीदत्त जोशी सदर अमीन साहब का स्मरण किया जाता है जिन्होंने अपने अथक परिश्रम से इस उत्सव को वर्तमान स्वरुप दिया था। तब से नगर के प्रतिष्ठित व उत्साही नागरिकों के सहयोग से यहां रामलीला सम्पन्न होती रही। विगत वर्ष इस जमीन के मुंतजिम श्री जगदीश चन्द्र जोशी (स्व0 रा0ब0 श्री बदरीदत्त जोशी, सदर अमीन के पौत्र) ने इस स्थान पर लीला करने से रोका परंतु कुछ तत्कालीन अधिकारियों के बीच में पड़ने से पारिस्थिति सुलझ गई और लीला आनन्दपूर्वक सम्पन्न हो गई। इस वर्ष भी सदा की भांति इस उत्सव का कार्य सुचारु रुप से चलाने के लिए एक समिति बनाई गई। उसने अपना कार्य प्रारम्भ किया। परंतु श्री जगदीश चन्द्र जोशी ने श्री रामलीला कमेटी को सूचित किया कि उन्होंने यह निश्चय किया है कि वे वर्ष भी रामलीला नहीं करने देंगे। उनका यह कहना कि उपयुक्त स्थान उनका है अत: वे जैसा उचित समझें उस जमीन के स्वामी की हैसियत से वैसा कर सकते हैं। परंतु रामलीला कमेटी ने निश्चय किया कि कमेटी उस स्थान पर लीला करना अपना हक समझती है और उसी स्थान पर लीला करेगी। इसके उपरांत स्थानीय अधिकारियों के सम्मुख दो विचारधारायें थी एक तो श्री जगदीश चन्द्र जोशी द्वारा व्यक्त की गई थी कि जमीन के वे मालिक है। अत: जैसा वे इस सम्बंध में ठीक समझते हैं वैसा उन्हें करने का अधिकार है।
कल दूसरी कड़ी में………
