दीपावली पर्वों की श्रृंखला पर विशेष
धनतेरस— दीपावली पर पर्वों की श्रृंखला में धनतेरस का दिन आता है। यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन आयुष के देवता भगवान धन्वन्तरि व मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है। भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से भी ऊपर माना जाता है। स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ्य मन रहता है कहा भी है ” पहला सुख निरोगी काया दुजा सुख घर में हो माया” इसलिए दीपावली में लक्ष्मी पूजन से पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब देवता व दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। उसी समुद्र मंथन से कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को भगवान धन्वन्तरि अपने हाथ में अमृत कलश लेकर समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे। कहा जाता है कि भगवान धन्वन्तरि विष्णु के अवतार है। जो संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार व प्रसार के लिए ही भगवान ने धनवन्तरि का अवतार धारण किया था भगवान धन्वन्तरि के प्रकटोत्सव को ही धनतेरस के रुप में मनाया जाता है। धनतेरस पर अपने सामर्थ के अनुसार चांदी, स्वर्ण आदि के धातु को खरीदना शुभ माना जाता है आज के दिन लोग संपत्ति प्राप्ति हेतु धन के देवता कुबेर के लिए पूजा स्थल पर दीप दान करे एवं मृत्युदेवता यमराज के लिए मुख्य द्वार पर दीप दान करें। धनतेरस से जुड़ी एक कथा का और वर्णन आता है। जब राजा बलि ने सम्पूर्ण पृथ्वी पाताल, स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया तो देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्त करने के लिए भगवान विष्णु ने बामन का रुप बनाकर अवतार लिया और राजा बलि, जहां पर यज्ञ कर रहे थे वहां पहुंच गये परंतु शुकराचार्य बामन रुप विष्णु को पहचान गये तथा बलि को समझाया कि यह बामन तुमसे कुछ भी मांगे तो देना मत इंकार कर देना। ये साक्षात विष्णु है जो बामन का रुप धर कर तुम्हारे पास आये हैं। जो देवताओं के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आये हैं। राजा बलि अपनी दान वीरता के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने कहा कि मैं किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं भेज सकता इसे मेरी दानवीरता पर कलंक लग जायेगा। तो राजा बलि ने बामन से कहा कि आप को क्या चाहिए? मैं संकल्प करता हूं । बामन ने कहा मुझे कुछ नहीं चाहिए केवल अपनी पूजा पाठ व ध्यान के लिए तीन पग जमीन चाहिए। तो राजा बलि ने कहा बस इतना? कह कर कमण्डल से जल निकाल कर संकल्प करने को तैयार हुए तो शुकराचार्य अपना लघु रुप बनाकर बलि के कमण्डल में प्रवेश कर गये जिससे कमण्डल ने जल निकलने का मार्ग बंद हो गया।
भगवान विष्णु शुकराचार्य की चाल समझ गये। उन्होंने अपने हाथ में रखी कुशा को कमण्डल के छेंद में ऐसे डाला कि कमण्डल में बैठे शुकराचार्य की एक आंख फूट गयी और शुकराचार्य तड़पते हुए कमण्डल से बाहर निकल आये। इसके बाद शुकराचार्य के मना करने के बाद
भी बलि के दान संकल्प किया तथा बामन को तीन पग धरती दान कर दी। भगवान ने अपने एक ही पग में सम्पूर्ण पृथ्वी, दूसरे पग में अंतरिक्ष नाप लिया तथा तीसरा पग रखने में कोई स्थान ही नहीं बचा तो राजा बलि ने अपना शीश आगे कर दिया। बामन ने उसके शीश में पैर रखकर उसे पाताल भेज दिया और वहां का राजा बना दिया तथा वरदान दिया कि अगले मन्वंतर में तुम्हें स्वर्ग लोक में इन्द्र की पदवी प्राप्त होगी। इस प्रकार राजा बलि दान में सब कुछ हार गया और देवताओं को बलि के भय से मुक्ति मिली। बलि ने जो सम्पत्ति देवताओं के छीनी थी उसे कई गुना धन सम्पत्ति देवताओं को वापस मिल गयी। इसी को आधार मानकर आज भी लोग धनतेरस का त्यौहार मनाते है। —जगदीश जोशी