करवाचौध पर विशेष— प्राचीन परम्परा पर हावी होती नई परम्परायें
आश्विन मास की (कार्तिक) की कृष्ण पक्ष की चर्तुदशी को यह पर्व सौभाग्य शाली स्त्रियां बनाती है। भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही चल रही परम्परा के अनुसार भारतीय नारियां अपने सुहाग की रक्षा के लिए वट सावित्री का व्रत रखती थी। यह व्रत जेष्ठ मास की अमावस्या को अपने सुहाग की रक्षा के लिए सौभाग्यशाली स्त्रियां मनाती थी। इस पर्व के आधार में सावित्री व सत्यवान का प्रसंग आता है। शास्त्रों के अनुसार सावित्री को साक्क्षात यमराज के दर्शन प्राप्त हुये जो अपने मृत पति के प्राणों को यमराज से वापस लाने में कामयाब होती है। इसी को आधार मानकर भारतीय नारियां अपने सुहाग की दिर्घायु के लिये व्रत करते आ रही है। लेकिन आज इन व्रतों का स्वरुप बदलता जा रहा है। आज से लगभग 10—20 वर्ष पूर्व कुमाऊं क्षेत्र में करवा चौथ कुछ मैदानी भागों की महिलायें ही मनाती थी। लेकिन कुछ फिल्मों धारावाहिकों में इस पर्व पर इतना प्रभाव डाला कि 90 प्रतिशत महिलायें करवा चौथ का व्रत करने लगी है। हमारी परम्परा सीता सावित्री अनुसुया अरुधंती को आधार में रखकर पति के कल्याण की कामना करने की है। लेकिन धीरे—धीरे आज प्राचीन कथायें अपने स्वरुप को खोती जा रही है। उनके स्थान पर नयी—नयी परम्परायें अपना स्थान बनाते जा रही है। करवा चौथ का व्रत पहले मुम्बई जैसे फिल्म हस्तियों में मनाये जाने लगा। उसी का अनुसरण करते — करते आज इस पर्व ने पूरे भारतीय समाज में अपना स्थान बना लिया है। इस व्रत में महिलायें निर्जाला व्रत रखती है तथा 16 श्रृंगार कर अखण्ड सौभाग्य की कामना करती है एवं चन्द्रमा की पूजा करती है। अन्तोगोत्वा इस पर्व का उद्देश्य भी वहीं है जो वट सावित्री व्रत का है। व्रत बनाने के लिए लोगों ने अपनी प्राचीन परम्पराओं को छोड़कर नयी परम्परा को अपना लिया है। उद्देश्य दोनों परम्पराओं का अखण्ड सौभाग्य की कामना है। — जगदीश जोशी