दूसरा कुमाऊंनी दिवस शहीदों की याद में मनाया गया
भाषा से ही व्यक्ति की पहचान होती है तथा अपनी भाषा से ही समाज की पहचान होती है। जो अपनी बोली भाषा भूल गया उसकी जड़े भी जल्द सूख जाती है उक्त उद्गार देहरादून में आज यहां के सामाजिक संगठन पर्वतीय राज मंच द्वारा दूसरा कुमाऊंनी भाषा दिवस के अवसर पर वक्ताओं ने कही इस अवसर पर कूर्मांचल सांस्कृतिक एवं कल्याण परिषद शिवालिक रेंज के अध्यक्ष नन्दन सिंह बिष्ट ने कहा कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों व लोकभाषा पर आधारित फिल्म एवं गीत एक ऐसा माध्यम है जिससे उसकी पहचान होती है और बोली से समाज की पहचान पुख्ता होती है। इस अवसर पर 1 सितम्बर को खटीमा में तथा 2 सितम्बर को मंसूरी में वर्ष 1994 में उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के दौरान शहीद हुए आन्दोलन कार्यो की स्मृति में यह दिवस 1 सितम्बर को गढ़वाली भाषा दिवस व 2 सितम्बर को कुमाऊंनी भाषा दिवस के रुप में मनाया जाता है। इस अवसर पर मंच के संस्थापक अनुज जोशी ने कहा कि उन शहीदों की स्मृति में जो उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में पुलिस की गोलियों से शहीद हुए उनको यह दिवस श्रृद्धांजलि के रुप में अर्पित है। इस अवसर पर कूर्मांचल परिषद के हरीश सनवाल ने भी अपने विचार व्यक्त किए।