उत्तराखण्ड का सर्वप्रिय लोक कलाकार मोहन सिंह बोरा जानिये कौन थे
उत्तराखण्ड की धरती पर संभवत: कोई जीवित लोक कलाकार ऐसा नहीं है जिसकी तुलना बहुमुखी प्रतिभा वाले लोक कलाकार मोहन सिंह बोरा रीठागाड़ी से की जा सके।
बुजुर्गों को स्मरण होगा जब अल्मोड़ा नगर में प्रथम शरदोत्सव हुआ था उस अवसर पर स्थानीय राजकीय इण्टर कालेज अल्मोड़ा के हाल में जो संगीत सम्मेलन हुआ था उसमें देश के चोटी के कलाकार शास्त्रीय संगीत के चन्द्रशेखर पंत, तबला वादक अहमद जान थिरकुवा ने भाग लिया उसकी शुरुआत मोहन सिंह के द्वारा प्रस्तुत लोक—गाथा मालूशाही के स्वरों से हुआ जिसकी सर्वत्र भूरि—भूरि प्रशंसा की गई।
पिथौरागढ़ जनपद के ग्राम थपना में 1911 को हिम्मत सिंह के परिवार में जन्मे मोहन सिंह का रुझान बचपन से ही लोकगीतों की ओर रहा यही कारण था कि वे मालूशाही, भगनौला, झोड़ा, चांचरी, रमौला, व भड़ा व फाग गाने में महारथ हासिल कर चुके थे और कुमाऊं लोक वांगमय का विषय कोष ही उनके पास था।
सन् 1947 में अपने पैतृक गांव छोड़कर वे अल्मोड़ा जनपद की रीठागाड़ पट्टी की वेदीबगड़ ग्राम में चले आये। कुमाऊं के ख्याति प्राप्त लोक कलाकार मोहन उप्रेती, बृजेन्द्र लाल साह, बृज मोहन साह मोहन सिंह बोरा के शिष्य रहे है। पट्टी रीठागाड़ में बस जाने के कारण ही लोग उन्हें मोहन सिंह रीठागाडी के नाम से जानते थे। उनकी हुड़के के बोल, कण्ठ की आवाज आज भी उनका स्मरण होने पर मनस्थल पर आ जाती है मालूशाही गायन के वे मास्टर ही थे। कुमाऊं मण्डल के शरदोत्सवों ग्रीष्मोत्सवों, और विशेष समारोह उनके बिना अधूरे रहते थे आकाशवाणी के लिए भी उन्होंने कई कार्यक्रम दिएऔर उसके बाद लखनऊ से दिल्ली तक उनकी मांग होने लगी। मोहन सिंह के मोहक न्यौलीयों की तो शानी नहीं थी मालूशाही के मर्म स्पर्शी प्रसंग आज भी उनकी अतीत की स्मृति दिलाती है।